सोमवार, 23 मई 2011

मकसद

इरादों को मकसद बनाकर देखो,
मंजिल खुद इंतज़ार ताकेगी।

सोमवार, 20 सितंबर 2010

इंसान


इंसान कुछ इस तरह से जिंदा है

मानो शिकायतों का पुलिंदा है

दिखता नहीं उसकी आँखों में सुकून

हर वक़्त, काम-पैसा-जुगाड़ का जूनून...

रविवार, 18 जुलाई 2010

माँ


माँ, मैं तेरे चेहरे की झुर्रियों को पढ़ने लगा हूँ,
माँ, मैं तेरे चेहरे की झुर्रियों को समझने भी लगा हूँ,

मैं सीख गया हूँ कि
दिल में दर्द हो तो
मुस्कुराया कैसे जाता है,
माँ, तू ऐसी क्यों है?

मैं जान गया हूँ कि
खुद व्रत उपवास रखकर
बच्चों का पेट कैसे भरा जाता है,
माँ, तू ऐसी क्यों है?

दुनिया में जब आया
सबसे पहले तेरा ही नाम गाया
जब-जब मैंने चोट खाई
तेरी आँख क्यों भर आयी?
माँ, तू ऐसी क्यों है?

जब घर के लोग मुझसे पूछते हैं
कितना कमाया, कितना बचाया
तब तू पूछती है,
बेटा, तूने खाना खाया?
माँ, तू ऐसी क्यों है?

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

हिंदी की आत्मा अवधी





पिछले दिनों मुंबई में अवधी सम्मलेन आयोजित किया गया। अवधी भाषा में काव्यपाठ के लिए मेरे मित्र राजेश विक्रांत ने मुझे फोन किया। मै अपने आपको सम्मानित महसूस कर रहा था कि आज तक मंचों पर हिंदी में वो कवितायें सुनाई जो लोग सुनना चाहते थे, आज मै वो कविता सुनाऊंगा जिसमे मेरी भाषा की महक होगी।



मुंबई -विलेपार्ले के शुभम हाल में मै पंहुचा तो गिनेचुने कविऔर लगभग उतने ही सुनने वाले। पहले परिचर्चा शुरू हुई जिसमे कई विद्वानों ने अपने विचार रखे। फिर कवियों ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। मै तब तक दर्शक दीर्घा में ही बैठा था। काफी देर हो चुकी थी। मै इंतज़ार कर रहा था कि संचालक देवमणि पाण्डेय जी मुझे कब बुलाते हैं। मैंने धीरे से पीछे मुड़कर देखा तो अवाक रह गया। तब तक पूरा हाल भर चुका था। मै गदगद हो गया कि आज भी अपनी भाषा के प्रति लोग कितना लगाव रखते हैं कि मुंबई जैसे शहर में व्यस्त होने के बावजूद लोग इतनी बड़ी संख्या में वहां पहुंचे ।



खैर मेरी बारी आयी। एक नामचीन अखबार में काम करने और कुछ टीवी धारावाहिकों में काम करने के कारण कुछ लोग मुझे जानने लगे है। कुछ ने मुझे पहचाना, कुछ के बारे में मैंने चाहा कि वे मुझे पहचानें । मंच पर पहुंचा । मैंने पहली कविता `सोन्ह सोन्ह माटि महिके चलइ रे बयरिया, गवुंवामें हमरे चलई पुरवैय्यागाये लोगों ने काफी तारीफ़ की। तालियों के बाद मेरा हौसला और बढ़ा। मैंने दूसरी कविता `आव चली गवुंवाकी ओर के अलावा कुछ और कवितायें सुनाईं । पहली बार प्रतीत हुआ कि मैंने अपनी भाषा के लिए कुछ किया। काव्य गंगा अवधी में बही जा रही थी , लोग भी साथ डुबकी लगाए जा रहे थे। आखिरी कवि के बाद लोग भोजन के लिए निकले। लोग भोजन के दौरान भी अपनी भाषा में बात कर रहे थे।



कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ



लोक जीवन की अदभुत झाँकी प्रस्तुत करने वाली अवधी भाषा बड़ी भाग्यशालीहै। इसके सौभाग्य का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इसे गोस्वामी तुलसीदाससरीखा महाकवि मिला और गोस्वामीजी का सौभाग्य कि उन्हें श्रीराम सरीखामहानायक मिल गया । परिणामस्वरूप श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचनाहुई । ये विचार मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.रामजी तिवारी ने ‘रंग भारती’ और "हम लोग" द्वारा मुम्बई ( विलेपार्ले )के शुभम हाल में आयोजित "अवधी सम्मेलन" में व्यक्त किए ।



अवधी अकादमी के अध्यक्ष व बोली बानी के संपादक जगदीश पीयूष ने प्रमुखवक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि अवधी भाषा उ.प्र. के 24, बिहार के 2तथा नेपाल के 8 जिलों में लगभग 12 करोड़ लोगों की भाषा है । तुलसीदास,अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, कबीर, कुतुबन, मंझन औररहीम सरीखे महाकवियों ने अवधी में काव्य रचना करके इस लोकभाषा को गौरवप्रदान किया।



नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी कोजन्म देनेवाली अवधी का दीप मुंबई में पहली बार प्रज्जवलित हुआ है, हमेंइसे हमेशा जलाए रखना है।



दोपहर का सामना के कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्लने अवधी हिंदी की आत्मा है । श्रीरामचरितमानस व पदमावत के बिना हिंदी कीकल्पना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने अवधी प्रेमियों को भरोसा दिलाया कि"रंगभारती" की ओर से शीघ्र ही "अवध महोत्सव" का आयोजन किया जाएगा ताकिअवधी का प्रवाह रुकने नहीं पाए।
कवि-गीतकार देवमणि पांडेय ने बताया कि सुलतानपुर के लोककवि पं।रामनरेशत्रिपाठी ने 1925 और 1930 के बीच अवध क्षेत्र का दौरा करके 15 हज़ार सेभी अधिक लोकगीतों का संग्रह किया था । इसी के आधार पर उन्होंने ‘कविताकौमुदी’ किताब लिखी । उनके इस प्रयास की सराहना महात्मा गाँधी और पं.जवाहरलाल नेहरु ने भी की थी ।



इस अवसर पर आयोजित लोककाव्य संध्या में गीतकार हरिश्चंद्र, बृजनाथ, आनंदत्रिपाठी, पं. किरण मिश्र, देवमणि पांडेय, डॉ.बोधिसत्व, ह्रदयेश मयंक,रामप्यारे रघुवंशी, सुरेश मिश्र, ओमप्रकाश तिवारी, अभय मिश्र, रासबिहारीपांडेय, मनोज मुंतशिर, आदि ने लोकभाषा की बहुरंगी रचनाएं सुनाकर श्रोताओंको भावविभोर कर दिया । समारोह में मुम्बई की धरती पर सर्वप्रथम रामलीलाका आयोजन करने वाले स्व.शोभनाथ मिश्र के सुपुत्र तथा "श्री महाराष्ट्ररामलीला मंडल" के महामंत्री द्वारिकानाथ मिश्रा का सम्मान किया गया ।लोकगायक दिवाकर द्विवेदी व बाल कलाकार आदित्यांश ने भी सम्मेलन मेंभागीदारी की। अतिथियों का स्वागत "हम लोग" संस्था के अध्यक्ष एडवोकेटविजय सिंह ने किया । आभार प्रदर्शन अवधी सम्मेलन मुंबई के संयोजक राजेशविक्रांत ने माना।


बुधवार, 9 दिसंबर 2009

आशियाँ


कुछ पत्थर हिन्दुओं ने चलाया

कुछ मुसलमानों ने

बेहतर होता

उससे

किसी

गरीब के लिए

एक आशियाँ बनाते।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

२६/११






एक गोली



सन्न से आकर



सीने में धंसी होगी,



जब गिन रहा था



वो आख़िरी साँसें



उसके सामने



उसकी बीवी की उजड़ी मांग



बच्चों का चेहरा



और बूढी माँ भी रोती रही होगी ...




शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

बेदर्द दर्द?


दर्द को भी अब दर्द होने लगा


दर्द ख़ुद ही मेरे घाव धोने लगा


दर्द के मारे हम तो बहुत रोये


अब दर्द ख़ुद मुझे छूकर रोने लगा।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

शराफत


शराफत

इंसानों की कैसी ये शराफत है

झूठ की नींव पे खड़ी सच की इमारत है

जेब में है खून से सने खंजर

औ' जुबां पे इबादत है ............




शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

`गे' हो


`गे' हो


अदालती आदेश के बाद देश की तस्वीर कुछ ऐसी हो सकती है ...


१) शाइनी आहूजा पर पुरूष नौकर से बलात्कार का आरोप।


२) सभी लड़कियां बिंदास्त होंगी और लड़कियां लड़कों को छेड़ेंगी।


३) 'पक्के` दोस्तों को दुनिया टेढी नज़र से देखेगी।


४) शादी के बाद दोनों पक्षों के लोग कहेंगे 'हमें लड़का पसंद है'


५) ट्रेन, बस, संसद में गे आरक्षण की मांग उठेगी।


६) १ जुलाई गे दिवस के रूप में मनाया जाएगा।


७) अगला आस्कर 'गे हो' के लिए मिलेगा। जिसे कोई राजनीतिक पार्टी अपना घोष वाक्य बनाएगी।


८) पृथक गे राज्य बनाने की और गे हाऊसिंग सोसाइटी बनाने की मांग की जायेगी।


९) गे एजूकेशन शुरू होगा।


१०) गाय, गीता और गंगा के देश में गे, नीचता और नंगा का बोलबाला होगा।


गे हो.......


मंगलवार, 5 मई 2009